महाकालेश्वर मंदिर की कहानी | Ujjain Mahakal Temple Story

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की कहानी बहुत ही रोचक है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मान्यता है कि इस मंदिर में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपने ही पुत्र भगवान शिव को नहीं बुलाया। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने यज्ञ में प्रवेश किया और अपने पिता दक्ष प्रजापति का सिर धड़ से अलग कर दिया।

इस घटना से देवताओं और ऋषियों में भय व्याप्त हो गया। वे भगवान शिव को शांत करने के लिए उज्जैन आए। भगवान शिव ने उन्हें बताया कि वे अपने क्रोध को शांत नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे उज्जैन में ही ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान रहेंगे।

देवताओं ने भगवान शिव की बात मान ली और उन्होंने उज्जैन में एक मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर में भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा की जाने लगी।

महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण कब हुआ, इस बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर 8वीं शताब्दी में बनाया गया था, जबकि अन्य का मानना है कि इसका निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था।

वर्तमान में महाकालेश्वर मंदिर एक भव्य और सुंदर मंदिर है। यह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है।

महाकालेश्वर मंदिर हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर देशभर से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

महाकालेश्वर मंदिर से जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्य इस प्रकार हैं:

  • यह मंदिर पृथ्वी का नाभिस्थल माना जाता है।
  • मंदिर के शिखर से कर्क रेखा होकर गुजरती है।
  • मंदिर में भगवान शिव की भस्म आरती बहुत प्रसिद्ध है।
  • मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर लाखों श्रद्धालु एकत्र होते हैं।

महाकालेश्वर मंदिर भारत के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है।

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