दयालु राजा और अभिमानी गौतम ऋषि की कहानी | Hindi Moral Kids Story

दयालु राजा और अभिमानी गौतम ऋषि की कहानी | Hindi Moral Kids story

एक बार की बात है, धर्मपुर नाम का एक नगर हुआ करता था, जिसका राजा धर्मात्मा और प्रजा-प्रेमी था। राजा हर रोज भगवान शिव की पूजा करता था और उनके प्रति अथाह श्रद्धा रखता था।

उसी नगर में गौतम नाम के एक प्रसिद्ध ऋषि रहते थे। गौतम ऋषि को अपनी विद्या और तपस्या पर बहुत अभिमान था। वह समझते थे कि उनकी शक्तियां किसी से कम नहीं हैं। एक दिन, राजा धर्मात्मा ने गौतम ऋषि को भंडारे में आमंत्रित किया। भंडारे में गौतम ऋषि को राजा के बगल में सबसे ऊंचा आसन दिया गया। यह देखकर उनका अभिमान और बढ़ गया।


भोजन के दौरान, राजा ने गौतम ऋषि से पूछा, “हे ऋषिवर, आपकी असीम तपस्या और ज्ञान के बल पर, क्या आप भविष्य देख सकते हैं?”

गौतम ऋषि ने अभिमानी स्वर में कहा, “राजन, निश्चित रूप से! मेरी दिव्य दृष्टि भविष्य के अंधकार को भेद सकती है।”

राजा ने विनम्रतापूर्वक पूछा, “तो हे ऋषिवर, कृपा करके बताइए कि मेरा राज्य और प्रजा का भविष्य कैसा होगा?”

गौतम ऋषि ने कुछ क्षण ध्यान लगाया और फिर बोले, “राजन, मुझे भविष्य में अंधकार दिखाई दे रहा है। एक भयानक सूखा पड़ने वाला है, जो आपके राज्य को तबाह कर देगा। प्रजा त्रस्त हो जाएगी और आपका राज्य विनाश के कगार पर पहुंच जाएगा।”

यह सुनकर राजा धर्मात्मा चिंतित हो गए। उन्होंने पूछा, “क्या इस विनाश को टालने का कोई उपाय है?”

गौतम ऋषि ने दीन आवाज में कहा, “राजन, इस विनाश को रोकने का केवल एक ही रास्ता है – आपको भगवान शिव की कठोर तपस्या करनी होगी। उन्हें प्रसन्न करके ही आप इस प्रलय को टाल सकते हैं।”

राजा धर्मात्मा ने तुरंत ही गौतम ऋषि की बात मान ली। उन्होंने अपने राज्य का भार मंत्रियों पर छोड़ दिया और कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की कठोर तपस्या करने चले गए। उन्होंने दिन-रात ध्यान, उपवास और पूजा की। उनकी भक्ति से कैलाश पर्वत का वातावरण पवित्र हो गया।


अंत में, भगवान शिव राजा धर्मात्मा की भक्ति से प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा को दर्शन दिए और कहा, “राजन, तुम्हारी भक्ति से मैं प्रसन्न हूं। मैंने तुम्हारे राज्य पर आने वाले सूखे को टाल दिया है। तुम्हारे राज्य में सुख-समृद्धि लौटेगी।”

राजा धर्मात्मा हर्ष से भर गए। उन्होंने भगवान शिव को प्रणाम किया और धर्मपुर लौट आए। कुछ ही दिनों में, बारिश होने लगी और राज्य में हरियाली लौट आई। प्रजा आनंदित हो गई और राजा धर्मात्मा की जय-जयकार करने लगी।

इस घटना से गौतम ऋषि को अपना भ्रम दूर हुआ। उन्हें समझ आया कि सच्ची शक्ति अभिमान में नहीं बल्कि भक्ति और विनम्रता में होती है। उन्होंने राजा धर्मात्मा से क्षमा मांगी और उनका अनुयायी बन गए।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि:

  • अभिमान हमें अंधकार की ओर ले जाता है, जबकि भक्ति और विनम्रता हमें सच्ची शक्ति और सफलता प्रदान करती है।
  • भगवान की भक्ति करने से ही हम जीवन में आने वाली कठिनाइयों को पार कर सकते हैं।
  • दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।