एक बार की बात है, एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम पार्वती था। दोनों पति-पत्नी बहुत ही भक्त थे। वे रोजाना भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते थे।
एक दिन, ब्राह्मण की पत्नी गर्भवती हो गई। उसने भगवान शिव और पार्वती से प्रार्थना की कि उन्हें एक बुद्धिमान और सुंदर पुत्र की प्राप्ति हो।
भगवान शिव और पार्वती ने उनकी प्रार्थना सुन ली। एक दिन, पार्वती ने स्नान करने के लिए अपने कमरे में बंद कर दिया। उसी समय, एक बालक का जन्म हुआ। बालक के जन्म के साथ ही पूरे घर में खुशियाँ छा गईं।
बालक का नाम गणेश रखा गया। गणेश एक बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान बालक था। वह बचपन से ही भगवान शिव और पार्वती की पूजा करता था।
एक दिन, भगवान शिव और पार्वती वन में विहार करने गए। उन्होंने गणेश को घर पर रहने का आदेश दिया और कहा कि जब तक वे वापस न आ जाएँ, तब तक किसी को भी घर में प्रवेश न करने दें।
गणेश ने अपने माता-पिता की बात मान ली। उसने घर पर पहरा देना शुरू कर दिया।
उसी दिन, भगवान शिव के गण, कार्तिकेय, वन से लौट रहे थे। उन्होंने देखा कि गणेश घर के दरवाजे पर खड़ा है। वे गणेश से पूछने लगे कि वे किसके घर में प्रवेश करना चाहते हैं।
गणेश ने कहा कि यह घर उसके माता-पिता का है और उन्होंने उसे किसी को भी घर में प्रवेश न करने का आदेश दिया है।
कार्तिकेय ने गणेश से कहा कि वह भगवान शिव का पुत्र है और उसे घर में प्रवेश करने का अधिकार है।
गणेश और कार्तिकेय में विवाद हो गया। दोनों एक-दूसरे से लड़ने लगे।
गणेश ने कार्तिकेय को रोकने का प्रयास किया, लेकिन कार्तिकेय ने गणेश को एक शक्तिशाली घूंसा मारा। घूंसा लगने से गणेश का मस्तक उड़ गया।
गणेश की मृत्यु से पार्वती को बहुत दुख हुआ। वह रोते हुए भगवान शिव से मदद मांगने लगी।
भगवान शिव को भी गणेश की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि वे एक हाथी का मस्तक लाएँ।
गणों ने एक हाथी का मस्तक लाकर भगवान शिव को दिया। भगवान शिव ने गणेश के शरीर पर हाथी का मस्तक स्थापित कर दिया।
गणेश को एक नया जीवन मिला। वह फिर से जीवित हो गया।
गणेश की मृत्यु और पुनर्जन्म की घटना से सभी देवता और ऋषि-मुनियों को बहुत आश्चर्य हुआ। वे सभी भगवान शिव की शक्ति और दया से प्रभावित हुए।
भगवान शिव ने गणेश को सभी बाधाओं का नाश करने वाला और सभी कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाला बनाया।
गणेश को भगवान शिव का गणपति, प्रथम पूज्य, विनायक और विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। वे सभी देवताओं में सबसे पहले पूजे जाते हैं।
गणेश जी की कथा का सार
गणेश जी की कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा सत्य और धर्म का पालन करना चाहिए। हमें किसी से भी झूठ नहीं बोलना चाहिए और किसी का हक नहीं मारना चाहिए। हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।
गणेश जी की कथा हमें यह भी शिक्षा देती है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। हमें हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए।
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