कहानी:
बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में रामू नाम का एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत ही गरीब था लेकिन ईमानदारी से अपना जीवन यापन करता था। रोज़ सुबह वह पास के जंगल में जाता और लकड़ियां काटकर बाजार में बेचता।
एक दिन, जैसे ही वह नदी के किनारे एक पेड़ की शाखा काट रहा था, उसका कुल्हाड़ी हाथ से फिसलकर नदी में गिर गई। नदी बहुत गहरी थी और रामू को तैरना नहीं आता था। वह बहुत परेशान हो गया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
रामू बोला,
“हे भगवान! मेरी कुल्हाड़ी ही मेरा एकमात्र साधन है। अब मैं अपने परिवार का पेट कैसे भरूँगा?”
उसी समय, नदी की देवी जल से प्रकट हुईं और बोलीं,
“हे लकड़हारे! तुम क्यों रो रहे हो?”
रामू ने उन्हें पूरी बात बता दी।
देवी मुस्कराईं और नदी में डुबकी लगाकर सोने की कुल्हाड़ी लेकर आईं। उन्होंने पूछा,
“क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
रामू ने तुरंत जवाब दिया,
“नहीं देवी जी, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”
फिर देवी ने चाँदी की कुल्हाड़ी निकाली और वही प्रश्न दोहराया। रामू ने फिर मना कर दिया।
अंत में देवी ने लोहे की पुरानी कुल्हाड़ी निकाली। रामू खुश होकर बोला,
“हाँ देवी जी! यही मेरी कुल्हाड़ी है।”
देवी उसकी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने रामू को तीनों कुल्हाड़ियाँ इनाम में दे दीं।
रामू बहुत धन्यवाद कहता हुआ अपने घर लौट गया।
शिक्षा:
ईमानदारी का फल हमेशा मीठा होता है।
(Honesty is always rewarded in the end.)