शीर्षक: भक्त की भक्ति और महादेव की कृपा
(True Devotion of a Bhakt in the Holy Month of Sawan)
भूमिका:
सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है। इस महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करने, व्रत रखने और ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। यह एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है जो उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव में घटित हुई थी, जहाँ एक सच्चे भक्त की भक्ति ने महादेव को साक्षात प्रकट होने पर विवश कर दिया।
कहानी: भोला भक्त और महादेव
उत्तर प्रदेश के एक गाँव में “भोला” नाम का एक युवक रहता था। नाम के अनुसार वह बहुत भोला था, लेकिन दिल से महादेव का परम भक्त था। उसके घर की स्थिति बहुत खराब थी। खेत नहीं थे, नौकरी नहीं थी, और माता-पिता भी वृद्ध और बीमार रहते थे।
भोला रोज़ सुबह गाँव के पास वाले शिव मंदिर में जाता, गंगाजल चढ़ाता और घंटों बैठकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करता। लोग उसका मज़ाक उड़ाते, कहते – “भक्ति से पेट नहीं भरता भोले!” लेकिन वह चुपचाप मुस्कराता और कहता – “महादेव देख रहे हैं।”
सावन का महीना आया
सावन का पहला सोमवार आया। भोला ने मन में संकल्प लिया – “मैं पूरे महीने जल लेकर 5 किलोमीटर दूर शिव मंदिर तक पैदल यात्रा करूंगा और महादेव को जल चढ़ाऊंगा।” उसके पास नए कपड़े नहीं थे, न ही अच्छे चप्पल, फिर भी वह नंगे पाँव यात्रा पर निकल पड़ा।
हर दिन सूरज उगने से पहले, वह जल कलश लेकर निकलता और दोपहर तक मंदिर पहुँचता। रास्ते में काँटे चुभते, गर्मी में पैर जलते, लेकिन उसके चेहरे पर भक्ति की चमक थी। लोग हैरान थे – “इतनी भक्ति किसलिए?” लेकिन भोला को केवल महादेव चाहिए थे।
सावन का अंतिम सोमवार
जब सावन का अंतिम सोमवार आया, भोला बहुत थका हुआ था। बुखार भी हो गया था, शरीर कांप रहा था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने जल कलश उठाया और मंदिर की ओर चल पड़ा।
रास्ते में वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसकी आंखें भारी हो गईं, और वह बेहोश हो गया। किसी ने नहीं देखा, कोई नहीं आया।
महादेव का चमत्कार
रात के समय गाँव वालों ने देखा कि शिव मंदिर की घंटियाँ अपने आप बज रही हैं, मंदिर से प्रकाश निकल रहा है, और वातावरण में दिव्यता फैल रही है।
अगली सुबह जब लोग मंदिर पहुँचे तो देखा – भोला मंदिर के गर्भगृह में लेटा हुआ था, उसका चेहरा शांत और चमकदार था। उसके पास रखा जल कलश खाली था – जैसे किसी ने उसे शिवलिंग पर चढ़ा दिया हो।
मंदिर के पुजारी ने बताया – “रात को मैंने स्वयं देखा, एक जटाधारी पुरुष ने आकर भोले के सिर पर हाथ रखा और कहा – ‘तेरी भक्ति ने मुझे बाँध दिया, पुत्र। तेरा कष्ट अब समाप्त।’ वह कोई और नहीं स्वयं महादेव थे।”
उस दिन के बाद
भोला की किस्मत बदल गई। गाँव में एक साहूकार ने उसकी मदद की, उसे छोटा सा काम दिया। धीरे-धीरे उसका जीवन सुधर गया। माता-पिता की दवा हुई, और घर में सुख आया।
लेकिन वह अब भी हर सावन में जल लेकर मंदिर जाता, लेकिन अब अकेला नहीं – उसके साथ कई और भक्त भी चलने लगे। लोग अब उसे “भोला बाबा का भक्त” कहने लगे।
कहानी से सीख:
- सच्ची भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाती।
- अगर श्रद्धा और विश्वास सच्चा हो, तो भगवान खुद आकर भक्त की सहायता करते हैं।
- सावन का महीना केवल पूजा-पाठ का नहीं, बल्कि त्याग, भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
ॐ नमः शिवाय 🙏
हर हर महादेव 🚩