एक गांव में मोहन नाम का बहुत गरीब व्यक्ति रहा करता था। मोहन के साथ उसके घर में उसकी पत्नी आशा और उसकी पांच वर्षीय बेटी निधि रहा करती थी। मोहन एक मजदूर था, जो दिन भर कड़ी मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता था। एक दिन की बात है। आशा घर के कामों में व्यस्त थी। तभी मोहन का दोस्त रमेश घबराया हुआ वहां आशा के पास आया।
क्या बात है रमेश, तुम इतने घबराए हुए ऐसे क्यों हो? सब कुछ ठीक तो है?
आपके लिए खबर अच्छी नहीं है।
आशा जी क्या कह रहे हो तुम? मुझे जल्दी बताओ। मेरा दिल बैठा जा रहा है।
मैं और मोहन गांव के जमीदार के घर पर मजदूरी कर रहे थे। अचानक मोहन का छत पर से पैर फिसल गया और वह ईटों का भार उठाए हुए छत से गिर गया। रमेश की बात सुनकर आशा रोते हुए बोली।
कहीं मोहन को कुछ हुआ तो नहीं। वह ठीक तो।
है। जमीदार ने मोहन को तुरंत डॉक्टर के पास भर्ती करवा दिया है। मगर डॉक्टर ने कहा है कि मोहन के पैरों में बहुत बुरी तरह से चोट आई है। आपको अभी और इसी वक्त मेरे साथ हॉस्पिटल चलना है।
हे भगवान ये क्या हो गया। अब मेरे परिवार का खर्चा कौन चलाएगा? अब सबकुछ कैसे होगा? मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि मैं हॉस्पिटल का बिल चुकता कर दूं। मैं क्या।
करूं? चिंता मत कीजिए। हॉस्पिटल का सारा बिल जमीदार चुका देगा। आप बस इसी समय मेरे साथ हॉस्पिटल चलिए। आशा रमेश के साथ हॉस्पिटल चली गई। कुछ दिनों के बाद मोहन बैसाखी पर चलता हुआ अपने घर पर आ गया और अपनी पत्नी और बच्ची को देखकर रोने लगा। तुम कितनी अभागी हो आशा? जबसे तुम्हारा मेरे साथ विवाह हुआ है, मैं तुम्हें कभी कोई सुख नहीं दे पाया और अब तो भविष्य की उम्मीद भी समाप्त हो गई है।
ऐसा मत कहिए, आप जीवित है। मेरे लिए यही काफी है।
भला इसे भी कोई जीना कहते हैं? आशा, मैं अब कदम कदम पर दुनिया का मोहताज रहूँगा। अरे, मैं तो चलकर एक गिलास पानी तक नहीं पी सकता। घर का खर्चा कैसे चलेगा? हमारा सपना था कि अपनी निधि को पढ़ा लिखाकर बहुत बड़ी अफसर बनाएंगे। अब यह सबकुछ कैसे होगा?
हिम्मत से काम लीजिए। मैं हूं ना। हम अपना सपना जरूर पूरा करेंगे। हम अपनी बेटी निधि को अच्छी शिक्षा दिलवाएंगे।
Speaker 1
लेकिन यह सब कुछ कैसे होगा? आशा तुम तो जानती हो ना कि अब मैं कोई काम धंधा नहीं कर सकता।
Speaker 2
आप काम धंधा नहीं कर सकते लेकिन मेरे हाथ पैर तो सही सलामत हैं ना। बचपन में मैं अपनी मां को सिलाई करते हुए देखती थी और मुझे शुरू से ही सिलाई और कढ़ाई का बहुत शौक था। मेरी मां ने मुझे सिलाई करना सिखाया था। आज से मैं गांव के लोगों के कपड़े सिल दिया करूंगी। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा जी।
Speaker 1
और ऐसा ही हुआ। उस दिन के बाद से आशा गांव के लोगों के कपड़े सीया करती थी और अपने परिवार का गुजारा किया करती थी। समय ऐसे ही बीतता गया। आशा ने निधि का सरकारी विद्यालय में एडमिशन करा दिया था। वह सुबह से लेकर शाम तक कपड़े सीती और फिर घर का खाना बनाती और रात के समय वह अपनी बेटी को दो घंटे पढ़ाती। ऐसे ही 10 साल बीत गए। निधि अब 15 वर्ष की हो चुकी थी। निधि ने हाईस्कूल में टॉप किया था।
Speaker 2
देखिए मां। मैंने हाईस्कूल में टॉप किया है और यह सब आपकी मेहनत का फल है। नहीं बेटी, मैंने तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया, बल्कि सच तो यह है कि यह तुम्हारी दिनरात की कड़ी मेहनत का फल है, जो तुमने हाईस्कूल टॉप किया। मेरी स्कूल की प्रिंसिपल कल आपको बुला रही हैं। वह आपसे कुछ बात करना चाहती हैं।
Speaker 1
तुम्हें जाकर प्रिंसिपल से बात करनी चाहिए। अगले दिन आशा निधि के साथ स्कूल के प्रिंसिपल के ऑफिस में चली गई। प्रिंसिपल सरोज वर्मा आशा को देखकर खुश होती हुई बोली अरे।
Speaker 2
कैसी बातें कर रही हैं आप? आपकी बेटी ने तो टॉप किया है और इसी खुशी में उसे स्कॉलरशिप मिली है। आपकी बेटी फर्स्ट ईयर यहां से कुछ दूर स्कूल में पढ़ेगी। क्या आप जानती हैं? कॉलेज में पढ़ने का सपना हर एक स्टूडेंट का होता है, लेकिन किसी भी स्टूडेंट का वहां पर आसानी से एडमिशन नहीं होता। यह तो मेरे लिए बहुत खुशी की बात है। आपका सपना था कि आपकी बेटी अच्छे स्कूल में पढ़े। मुझे विश्वास है कि एक न एक दिन आपकी बेटी कुछ बड़ा करके दिखाएगी। यह सब तो आपकी मेहनत का फल है। आशा जी, सारा गांव जानता है कि आप दिन रात मेहनत से कपड़े सीती रहती हैं और देखिएगा आपकी कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी।
Speaker 1
निधि खुश होती हुई अपनी मां के साथ घर पर आ गई। कुछ महीनों के बाद अपनी क्लास में बैठी हुई थी कि तभी किरण नाम की एक लड़की निधि के पास आकर बोली हाय।
Speaker 2
मेरा नाम किरण है। क्या तुम स्कूल में नहीं हो? हां, मैं स्कूल में नई हूं और आज मेरा फर्स्ट डे है। नाइस, वेरी नाइस। तुम कहां से आई हो और इससे पहले तुम कहां पढ़ती थी? मैं इससे पहले सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ती थी। वॉट तुम सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, जहां आसपास बहुत ज्यादा गंदगी फैली होती है। वैसे तुम्हारे पिता क्या करते हैं? वह अपाहिज है। मेरी मां काम करती है। मेरी मां बहुत अच्छे कपड़े सिलती है।
Speaker 1
निधि की बात सुनकर किरण सहित सारा क्लास निधी के ऊपर हंसने लगा।
Speaker 2
समझ गई तुम जरूर स्कॉलरशिप के जरिए स्कूल तक पहुंची हो। तुम्हारी बातों से लग रहा है कि तुम्हारे माता पिता की औकात सरकारी स्कूल तक पढ़ाने की भी नहीं होगी। वे यहां से उठो और जाकर पीछे वाली सीट पर बैठ जाओ। यह सीट मेरी है और यहां सिर्फ मैं ही बैठती हूं।
Speaker 1
निधि बेचारी चुपचाप उठकर सबसे पीछे वाली सीट पर बैठ गई कि तभी वहां पर क्लास टीचर क्लास में आ गई और निधी की ओर देखकर बोली।