एक राज्य में राजा रणवीर का शासन था। वह प्रजा का भला चाहता था, मगर चमचों की सभा ने उसे घेर रखा था। ये चमचें हमेशा राजा की हां में हां मिलाते और झूठी तारीफ करते। राजा को लगता था कि वह सबसे बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा है।
एक दिन, एक बुद्धिमान और सत्यवादी साधु राज्य में आया। वह राजा से मिलने गया। चमचों ने उसे रोका, पर साधु रुकने को तैयार नहीं हुआ। आखिरकार, राजा के सामने जा खड़ा हुआ।
राजा ने पूछा, “तुम कौन हो और क्यों आए हो?”
साधु ने कहा, “मैं एक साधु हूं और आपके राज्य का कल्याण चाहता हूं। मैंने सुना है आप बहुत न्यायप्रिय राजा हैं, पर सच्चाई यह है कि चमचों ने आपको अंधेरे में रखा है।”
राजा क्रोधित हुआ और कहने लगा, “मेरे शासन में कोई बुराई नहीं है। आप झूठ बोल रहे हैं!”
साधु ने कहा, “मैं झूठ नहीं बोल रहा। मैं आपको प्रमाण दूंगा। कल नगर चौक में आइएगा, मैं आपको सच्चाई दिखाऊंगा।”
अगले दिन, राजा और चमचों के साथ नगर चौक पहुंचा। साधु वहां एक खाली घड़े के साथ खड़ा था। उसने लोगों से कहा, “इस घड़े में राज्य की सच्चाई भरी है। जो सच्चा है, वही इसका ढक्कन खोल सकता है।”
चमचे एक-एक कर आए और ढक्कन खोलने की कोशिश की, पर किसी से नहीं हुआ। राजा भी असफल रहा। हताश होकर उसने साधु से पूछा, “आप ही इसे खोलें।”
साधु ने मुस्कुराकर ढक्कन खोला और घड़े से कुछ नहीं निकला। राजा और चमचें अवाक रह गए।
साधु ने समझाया, “यह घड़ा खाली है, क्योंकि आपके राज्य में सच्चाई को कोई छिपा नहीं रहा है। सच्चाई तो यह है कि इसे कोई स्वीकार ही नहीं करता।”
राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने चमचों को दूर किया और साधु से सलाह ली। उसने राज्य में सुधार लाने का प्रयास किया और सच्चाई और न्याय को प्राथमिकता दी।
सीख:
- चापलूसी से सच्चाई छिपती है।
- सत्य का सामना करना ही बुद्धिमानी है।
- न्यायपूर्ण शासन के लिए सच्चाई का स्वागत जरूरी है।
यह कहानी हमें सच्चाई और न्याय के महत्व को याद दिलाती है। यह हमें सिखाती है कि चापलूसी से बचना चाहिए और हमेशा सत्य का साथ देना चाहिए।
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