Putrada Ekadashi Vrat Katha – पुत्रदा एकादशी 21 या 22 जनवरी

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा:

एक समय की बात है, भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान अपने सारथी, श्रीदामा को एक महत्वपूर्ण व्रत के बारे में बताया था। इस व्रत का नाम था ‘पुत्रदा एकादशी’। इस व्रत का महत्व भगवान ने अपने शिष्य नारद मुनि को भी समझाया था।

कहते हैं कि कभी कभी किसी योद्धा को अपने बालकों का ध्यान रखना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि युद्ध के कठिन समय में उन्हें अपने परिवार से दूर रहना पड़ता है। इसी समस्या का समाधान करने के लिए भगवान ने यह एकादशी व्रत उपाय बताया था।

कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक राजा था जिसका नाम सुनीति था। वह बहुत संतानी थे, लेकिन उन्हें पुत्र नहीं हो रहा था। राजा सुनीति ने अपने ब्राह्मण गुरु से पूछा कि उन्हें पुत्र प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए।

गुरुजी ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। गुरुजी ने कहा, “इस व्रत को करके तुम भगवान विष्णु की कृपा पा सकते हो और वह तुम्हें एक सुन्दर पुत्र देंगे।”

राजा सुनीति ने गुरुजी की सीख को मानकर पुत्रदा एकादशी का व्रत आरंभ किया। वह नियमित रूप से व्रत करते रहे और भगवान विष्णु की पूजा करते रहे।

एक दिन, राजा सपने में देखा कि भगवान विष्णु उन्हें एक सुन्दर पुत्र दे रहे हैं। सपने के बाद ही राजा की पत्नी गर्भवती हुई और उन्हें एक सुंदर पुत्र हुआ।

इस व्रत का पालन करते समय व्रती व्यक्ति को नियमित रूप से उत्तम आचार-विचार में रहना चाहिए। उसे पारिवारिक धरोहरों का ध्यान रखना चाहिए और ध्यान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। व्रती को द्वादशी के दिन भगवान की आराधना के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है सच्ची भक्ति और श्रद्धा का। इस व्रत के माध्यम से व्रती भगवान के प्रति अपने सारे आसीर्वाद, समर्थन और प्रेम का अभास करते हैं।

यह एक विशेष पौराणिक दिन है जो पुत्रहीन योग्यता के लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन को ध्यानपूर्वक मनाने से व्रती को अपने जीवन में सुख, समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना करने का अवसर मिलता है।

इसे ध्यान में रखते हुए व्रती को सही रूप से व्रत का पालन करना चाहिए और भगवान की आराधना में विशेष भावना रखनी चाहिए। इस से उसे भगवान की कृपा मिलती है और वह अपनी कामनाओं को पूरा करता है।

पुत्रदा एकादशी व्रत का पालन करके व्रती अपने जीवन में सुख, शांति, और संतान को प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

इस प्रकार, राजा सुनीति ने पुत्रदा एकादशी के व्रत के द्वारा भगवान की कृपा प्राप्त की और एक सुन्दर पुत्र को प्राप्त किया। इस दिन को पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाने से पुत्रहीन योग्यता के लोग इस व्रत को आत्मसमर्पण भाव से करते हैं और भगवान से अपने पुत्र की प्राप्ति की कामना करते हैं।

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