बहुत समय पहले की बात है, एक हरे-भरे जंगल में नन्ही सी चींटी रहती थी। उसका नाम था चिंकी। चिंकी बहुत मेहनती और समझदार थी। वह हर दिन सूरज निकलते ही अपने घर से निकलती और खाने की तलाश में निकल पड़ती।
गर्मियों के दिन थे। सारे जानवर मौज-मस्ती कर रहे थे। टिड्डा, तितलियाँ और भौंरे झूमते-गाते फिर रहे थे। टिड्डा रोज़ चिंकी को देखकर कहता,
“अरे चिंता मत कर, खाने की कोई कमी नहीं है। क्यों अपना समय बर्बाद कर रही हो?”
लेकिन चिंकी मुस्कुराकर कहती,
“मैं अभी मेहनत कर रही हूँ ताकि सर्दियों में मुझे परेशानी न हो।”
दिन बीतते गए। चिंकी ने अपने बिल में बहुत सारा खाना जमा कर लिया। फिर एक दिन मौसम बदल गया। बादल छा गए और ठंडी हवाएँ चलने लगीं। धीरे-धीरे सर्दी आ गई।
अब जंगल का हाल बदल गया। टिड्डा और बाकी जानवरों को खाने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था। सभी ठंड और भूख से परेशान थे।
टिड्डा ठिठुरता हुआ चिंकी के पास गया और बोला,
“चिंकी, क्या तुम मेरी मदद कर सकती हो? मुझे बहुत भूख लगी है।”
चिंकी ने उसे अंदर बुलाया, गरम खाना दिया और कहा,
“मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि मेहनत करने से ही सुख मिलता है। लेकिन मैं तुम्हें माफ़ करती हूँ, और मदद करूंगी।”
टिड्डा ने शर्मिंदा होकर माफी माँगी और वादा किया कि अगले साल वह भी मेहनत करेगा।
सीख (Moral):
मेहनत का फल मीठा होता है और समय रहते काम करना ही समझदारी है।